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________________ प्रसङ्ग तीसरा (१) दृष्टियुद्ध (२) वचनयुद्ध (३) बाहुयुद्ध ( ४ ). मुष्टियुद्ध (५) दण्डयुद्व । १ दृष्टियुद्धः- दोनों माई स्थिरदृष्टि होकर एक दूसरेके सामने खड़े हो गये, किन्तु भरतकी आखों से पानी चल पड़ा ओर वे हिलने लगीं। २. ववनयुद्धः- चक्रवर्तीने प्रचण्ड-सिंहनाद किया, किन्तु बाहुबलिने अपने सिंहनादसे उसे ढाक दिया। 3. बाहुयुद्ध - दोनों वीर कुश्ती करने लगे और विचित्रखेल दिखाने लगे। लोग देख ही रहे थे कि बाहुबलिने भरतको गेंदकी तरह आकाशमे उछाल दिया। यह दृश्य अद्भुत एवं रोमांचकारी था। अब भरतको जीने की भी आशा नहीं रही थी, लेकिन कनिष्ठ भ्राताके दिलमे भ्रातृ-प्रेम उमड आया और उसने नीचे गिरते मरतको मेल लिया एव मौतसे बचा लिया। इस समय भरत मात्र पृथ्वी की तरफ झांक रहे थे। ४. मुष्टियुद्ध.-- मरतने लघुभ्राता के सिरमे मुका इतने जोरसे मारा कि वह क्षणभर के लिये स्तव्ध-सा हो गया, किन्तु शीत्र ही सम्मलकर उसने ऐसा विचित्र मुष्टि प्रहार किया, जिस. से भरत वेहोश हो गये एवं उचित उपचारोंसे उन्हें सचेत किया गया। ५. दण्डयुद्ध'-- चक्रवर्तीने दण्डरत्नको घुमाकर इतने जोरसे पटका. जिससे बाहुबलि घुटनों तक जमीनमें घुस गये। वे तुरन्त ही उछल कर बाहर आए और दण्डके बदले में दण्डका इतना जबरदस्त जवाब दिया कि चक्रवर्ती कण्ठ तक पृथ्वी में प्रविष्ट होगये एवं देवों द्वारा उनकी हार घोषित करदी गई।
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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