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प्रसंग दूसरा
गई । भगवान्ने व्याख्यानमें फरमाया कि मरुदेवी माता मुक्त हो गई । भरतजी चमककर दादीको सम्मालने लगे तो मात्र शरीर ही मिला। बड़ा भारी आश्चर्यजनक दृश्य था । लोग कहने लगे कि पुत्र हों तो ऐसे ही हों। एक हजार वर्षकी घोर तपस्यासे जो अनमोल ज्ञानरत्न प्राप्त किया, वह सर्वप्रथम अपनी परम पूज्य माताजीको लाकर दिया एवं उन्हे अनन्त मुक्तिसुखों मे भेजा ।
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