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________________ प्रसङ्ग चौवीसर्वा श्रादर्श - क्षमादान सभी कहते हैं कि वैर - जहर बुरा है, किन्तु मौका पड़ने पर शत्रुको क्षमा देनेवाले वीर इने-गिने ही मिलते हैं । 1 f वीतभय नगर मे तापस-भक्त उदायन नामके महाराज थे । दश मुकुटबन्ध राजा उनकी सेवा करते थे और सोलह देश उनके मातहत थे । उनकी पटरानीका नाम प्रभावती था जो भगवान्की परमभक्ता श्राविका थी एवं महाराज चेटककी पुत्री थी । रानीके कारणसे ही महाराज जैनधर्मके प्रति श्रद्धालु बने थे । श्रद्धालु नामके ही नहीं थे बल्कि उन्होंने जैनधर्मका तलस्पर्शीतत्त्व भी समझ लिया था । क्षमादानका अवसर एक वार उज्जयिनीपति महाराज चण्डप्रद्योतनने उदायनकी दासी स्वर्णगुलिकाका अपहरण कर लिया। समझाने पर भी नहीं समझा और बात यहाँ तक बढ़ गई कि बड़ी भारी सेना लेकर ग्रीष्मऋतु में उनको युद्ध करनेके लिए जाना पड़ा। भयंकर युद्ध हुआ | आखिर न्यायीकी जीत हुई । प्रद्योतन पकड़ा गया और मालवदेशमें महाराज उदायनकी सत्ता स्थापित हो गई । इतना ही नहीं, क्रोधवश उन्होंने अपराधीको मम दासीपति ऐसे अक्षरोंके दागसे दागी भी बना दिया तथा उसे वन्दीरूपसे लेकर वे अपने देशको रवाना हुए। मार्ग में संवत्सरी आ गई अतः
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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