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________________ चतुर्थ भाग । ८६. ५० । परतंत्रताके अभावको श्रवगाह प्रतिजीवी गुण कहते हैं। ५१ | उच्चता और नीचताके प्रभावको अगुरुलघुत्व प्रतिजीवी गुण कहते हैं। ५२ । इंद्रियोंके विषयरूप स्थूलताके अभावको सूक्ष्मत्व प्रतिजीवी कहते हैं । २६. व्यवसायचतुष्कसमस्यापूर्ति । -::-- सवैया इकतीसा | केई सुरे गावत है केई तौ बजावत है, केई तो बनावत है, भीड़े मिट्टी सानके । केई खाक पटकै है, केई खाक शटकै है, केई खाक लपटें है, केई स्वांग यानिके ॥ केई हाट बैटत है, अर्धिमें पैठत हैं, केई कान पेठत है, आप चूक एकसेर नाज काज आपनों शरीर त्याज, डोलत है लाज काज धर्मकाज हानिके ॥ ११ ॥ शिष्यको पढ़ावत है देहको बढ़ावत है, हमको गलावत हैं. नाना हल ठानिके । कौड़ी कौड़ी मांगत हैं, कायर है भागत हैं . १ राग । २ वर्तन | ३ समुद्रमे । ४ सोनेको गलाता है । जानिके ।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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