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________________ ८८ जैनवालबोधक ४३ । जिनके संयोग से यह जीव जीवन अवस्थाको प्राप्त हो और वियोग से मरण व्यवस्थाको प्राप्त हो उनको प्राण कहते हैं। ४४ । प्राण दो प्रकारका है. द्रव्य प्राण और भाव प्राण | द्रव्य प्राण दश प्रकारके हैं जैसे- मन, वचन, काय, स्पर्श इंद्रिय, रसना इंद्रिय, घाण इंद्रिय, चक्षुरिंद्रिय, श्रोत्र इंद्रिय, श्वासोच्छ्वास, आयु । ४५ | प्रात्माको जिस शक्तिके निमित्तसे इंद्रियादिक अपने कार्यमें प्रवर्ते उसे भावप्राण कहते हैं । ४६ | एकेंद्रिय के कुल चार प्राशा - स्पर्शेद्रिय, कायवल, स्वासोच्छ्वास और प्रायु होते हैं । द्वींद्रियके स्पर्शनंद्रिय, कायवल श्वासोच्छ्वास प्रायु रसनेंद्रिय और वचन ये ६ प्राण होते हैं. श्रींद्रिय जीवके पूर्वोक्त छह और घ्राणेंद्रिय मिलकर सात प्रागा होते हैं, चतुरिंद्रिय जीवोंके पृवोंक सात और चनुं मिलाफर ग्राठ प्रागा होते हैं । पंचेंद्रिय असेनी जीवों के पूर्वोक्त आठ और एक थोनेंद्रिय मिलाकर नौ प्रागा होते हैं और सैनी पंचद्वियके मन सहित दश प्राण होते हैं। ४७ । भावेंद्रिय पांच और मनोबल, वचनवल, कायवल मिलकर भावना याठ प्रकारका है । ४८ । वैभाविक गुण उस शक्तिको कहते हैं जिसके निमित्त से दुसरे द्रव्य के संबंध होनेपर श्रात्मामें विभाव परिणति हो । ४९ | साता और असातारूप प्राकुलताके प्रभावको अन्यावाघ प्रतिजीवी गुण कहते हैं ।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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