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________________ चतुर्थ भाग । ८७ ३१ | मन वचन कायके निमित्तसे आत्माके प्रदेशोंके चंचल होनेको योग कहते हैं । ३२ । क्रोध मान माया लोभ रूप आत्माके विभाव ( मोहकर्म जनित ) परिणामोंको कपाय कहते हैं । 1 ३३ | चारित्र चार प्रकारका है - स्वरुपाचरण चारित्र, देशचारित्र, सकल चारित्र, और यथाख्यात चारित्र । ३४ | शुद्धात्मानुभव के अविनाभावी चारित्र विशेषको स्वरूपाचरण चारित्र कहते हैं । ३५ | श्रावक के व्रतोंको देशचारित्र कहते हैं । ३६. मुनियोंके चारित्रको ( पांच पापोंके सर्वथा त्यागको ) सकल चारित्र कहते हैं । ३७ | कपायों के सर्वथा अभाव से प्रादुर्भूत श्रात्माकी शुद्धिविशेषका यथाख्यात चारित्र कहते हैं । ३८ । प्राहाद स्वरूप आत्मा के परिणाम विशेषको सुख कहते हैं । ३६ | आत्माकी शक्तिको (बलको ) वीर्य कहते हैं । ४० । जिस शक्तिके निमित्तसे आत्मा के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र प्रगट होने की योग्यता हो उसे भव्यत्व गुणा कहते हैं । ४१ । जिस शक्तिके निमित्तसे आत्मा के सम्यग्दर्शनादि के प्रगट होनेकी योग्यता न हो उसे प्रभव्यत्व गुण कहते हैं ।: ४२ | जिस शक्तिके निमित्तसे आत्मा प्राण धारण करे उसे जीवत्व गुण कहते हैं ।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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