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चतुर्थ भाग ।
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३१ | मन वचन कायके निमित्तसे आत्माके प्रदेशोंके चंचल
होनेको योग कहते हैं ।
३२ । क्रोध मान माया लोभ रूप आत्माके विभाव ( मोहकर्म जनित ) परिणामोंको कपाय कहते हैं ।
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३३ | चारित्र चार प्रकारका है - स्वरुपाचरण चारित्र, देशचारित्र, सकल चारित्र, और यथाख्यात चारित्र ।
३४ | शुद्धात्मानुभव के अविनाभावी चारित्र विशेषको स्वरूपाचरण चारित्र कहते हैं ।
३५ | श्रावक के व्रतोंको देशचारित्र कहते हैं ।
३६. मुनियोंके चारित्रको ( पांच पापोंके सर्वथा त्यागको ) सकल चारित्र कहते हैं ।
३७ | कपायों के सर्वथा अभाव से प्रादुर्भूत श्रात्माकी शुद्धिविशेषका यथाख्यात चारित्र कहते हैं ।
३८ । प्राहाद स्वरूप आत्मा के परिणाम विशेषको सुख कहते हैं ।
३६ | आत्माकी शक्तिको (बलको ) वीर्य कहते हैं ।
४० । जिस शक्तिके निमित्तसे आत्मा के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र प्रगट होने की योग्यता हो उसे भव्यत्व गुणा कहते हैं ।
४१ । जिस शक्तिके निमित्तसे आत्मा के सम्यग्दर्शनादि के प्रगट होनेकी योग्यता न हो उसे प्रभव्यत्व गुण कहते हैं ।: ४२ | जिस शक्तिके निमित्तसे आत्मा प्राण धारण करे उसे जीवत्व गुण कहते हैं ।