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जैनवालवोधक
मुमतिनाय तीर्थकर । सुमति सुमति दातार, सार बस वैजयंत मन । भूप मेघरयतात, मात मंगला कनक तन ॥ . पुल्व लाख चाळीस, ईस तन धनुष तीन सै।
चक्रवाक लखि चिन्न खर्ग श्रासन सुख बिलसै। छह मास अगाऊ गरमत, भयो विनीता सुर नगर। शिर नाय ननौ जुग जोरिकर, भो जिनंद भवताप हर ॥ ५ ॥
नाम--सुमतिनाय तीर्यकर। जन्म स्थान-विनीता · पिता-मेध. एयामाता-मंगलादेवी । पूर्वजन्मस्थान-वैजयंत विमान । शरीर वर्ण-कनक । आयु वालीस लाख पूर्व । कायकी ऊंचाई-तीन सौ धनुष । लक्षण-चक्रवाक । खर्गासनले मुक्ति गमन ॥५॥
६ । पद्मप्रभ तीर्थकर। पदम पदम भरि भमर, पदम लांचन सुखदाई । धरन भूप गुन कृष, स्वम्प सुसीमा माई ।। अंतिम ग्रीवक वास, दुस पंचास चाप तन।
खासन बहुसकत, रकत तन हरख करन मन । यिति तीस लाख पूरव पुरी, कौसंबी सबजन सुबर । शिर नाय नमों जुग जोरिकर, मी जिनंद भवतापहर । नाम-पद्मप्रमतीर्थकर । जन्म स्थान कौसांबी । पिता-घरनि। भाता-सुसीमादेवी । पदचिन्ह-कमल । पूर्व जन्म स्थानमंतिम ग्रैवेयक । शरीरकी ऊंचाई-दो से पंचास धनुष । प्रायुतीस लाख पूर्व । शरीरका वर्ण-लाल ! खड्गासनसे मुक्ति नमन ॥६॥