SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ भाग। ३ । संभवनाय तीर्थकर। संभव संभव हरन, पुरी सावत्ती जानौ। मात सुसैना रूप, भूप दिढ राज प्रवानौ ॥ खर्गासन सुख स्वादि, आदिग्रीवक्ते पाये। चिन्ह तुरंग उतंग रंग कंचन मय गाये ॥ थिति साठि लाख पूरव भुगति, धनुप चारि से लाख चर। शिर नाय नमौ जुग जोरिकरि, भो जिनंद भवताप हर ॥ ३ ॥ श्रर्थ-१ श्री संभवनाथ २ पिता-दिढरथराय ३माता-सुसना देवी ४ लच्छन-घोड़ा ५ आयु-साठ लाख पूर्व ६ शरीरकी ऊंचाई चारसै धनुष ७ जन्म स्थान-श्रावस्ती नगरी ८ पूर्व जन्म का स्थान-प्रथम प्रैवेयक शरीरका वर्ण कंचनमय १० खड्गासनसे मुक्ति गमन ॥३॥ ४। अभिनन्दन नीर्थंकर। अभिनंदन अभिनंद, कंद मुख भूप स्वयंवर । माता सिद्धारया कथा सुवरन तन मनहर ॥ तीनशतक पंचास धनुष तन नगरि विनीता। पुब लाख पंचास तास कपि लांछन मीता ॥ खर्गासन विजय विमानते, करम नास परकासकर । शिर नाय नमो जुग जोरि करि, भो जिनंद भवतापहर nam नाम-अभिनंदन तीर्थंकर । पिता-स्वयंवर। माता-सिद्धारया । शरीरका वर्ण सुवर्ण । कायकी ऊंचाई ३५० धनुष । जन्म नगरी-विनीता। प्रायु-पंचास लाख पूर्व । लन्छन-चंदरका । पूर्व जन्म स्थान--विजय विमान । खड्गासनसे मुक्ति गमन ॥en
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy