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जैनबालवोधकनहीं है । अवायसे जाने हुये पदार्थमें संशय तो नहिं होता किंतु विस्मरण हो जाता है।
१७। जिस ज्ञानसे जाने हुये पदार्थमें कालांतरमं संशय तथा विस्मरण नहिं होय उस धारणा कहते हैं।
२८१ मतिज्ञानके विषयभूत पदार्य व्यक्त और अव्यक्त दो प्रकारके होते हैं।
१६ । व्यक्त पदार्थके अवग्रहादि चारों होते हैं परंतु अव्यक्त पदार्यका सिर्फ अवग्रह ही होता है।
२० । व्यक्त पदार्थके अवग्रहको अर्थावग्रह और अन्यक्त पदार्थके अवग्रहको व्यंजनावग्रह कहते हैं । किंतु व्यंजनावग्रह चक्षु और मनसे नहिं होता है। ___ २१ । व्यक्त अव्यक्त पदार्थों के बारह बारह भेद होते हैं । जैसे-बहु, एक, बहुविध, एकविध, क्षिप्र, अक्षिण, निःसृत, “अनिःसृत, उक्त, अनुक्त, ध्रुव, अध्रुव
२३. धर्मोपदेश।
मत्तगयंद । चैतन जी तुम चेतत क्यों नहिं, आवघटै जिमि अंजुलपानी । सोचत सोचत जात सवै दिन, सोवत सोवत रैन विहानी ॥ "हारि जुवारि चले कर झार", यहै कहनावत होत अज्ञानी । -छाडि सवै विषया सुख स्वाद, गहो जिनधर्म सदा सुखदानी ॥१॥