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________________ चतुर्थ भाग। दर्शन चेतना चार प्रकारकी है, चतुर्दर्शन प्रचक्षुर्दर्शन अवधिदर्शन, और केवल दर्शन । १० । धानचेतनाके पांच मेद हैं-मतिमान, श्रुतक्षान, अव. विज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, और केवलज्ञान । ११ । इंद्रिय और मनकी सहायतासे जो ज्ञान ही, उसे मतिप्रान कहते हैं। १२ मतिमान दो प्रकारका है एक सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष और परोक्ष । परोक्षमतिक्षानके चार मेद है । स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान । १३ । मतिज्ञान दुसरी तरहसे ४ प्रकारका है. अयग्रह, ईहा अवाय और धारणा. १४। इंद्रिय और पदार्थके योग्य स्थानमें (मोजूद जगहमें) रहनेपर सामान्य प्रतिभासरूप दर्शनके पश्चात् अवांतरसत्ता सहित वस्तुके विशेष ज्ञानको अवग्रह कहते हैं. जैसे-यह मनुष्य है। १५। अवग्रहसे जाने हुये पदार्यके विशेषमं उत्पन्न हुये संशय को दूर करते हुये अभिलाप स्वरूप भानको ईहा कहते हैं जैसेये ठाकुरदासजी हैं । यह शान इतना कमजार है कि किसी पदार्थ की ईहा होकर छूट जाय तो उसके विषयमें कालांतरमें संशय और विस्मरण हो जाता है। १६ ईहासे जाने हुये पदार्थमें यह वह ही है अन्य नहीं है ऐसे मजबूत शानको अवाय कहते हैं। जैसे ये ठाकुरदासजी ही है और
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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