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चतुर्थ भाग। भरतकी मात्रामें बत्तीस हजार मुकुटवद्ध राजा और पत्ताल हजार ही देश थे तथा १८ हजार म्लेक्षखडके राजा थे। ज्यानवे हजार रानियां थी जिनमें बत्तीस हजार भूमिगोचरी राजाओंकी ३२ हजार विद्याधरोंकी और दत्तीस हजार म्लेक्ष
जावोंकी कन्यायें थी। इनमें प्रधान पटगानीका नाम सुभद्रा 'स्त्रीरत्न ) था। इस रानी में इतना बल था कि यह चुटकियोंसे रत्नोंका चूर्ण कर देती थी। __ भरतने अपनी लक्ष्मीका दान करनेके लिये ब्राह्मण वर्णकी स्थापना की थी अपनी अयोध्याकी प्रजामसे जो व्रती, कोमलचित्त धर्मरूप दयायुक्त गृहस्थ थे उन सबको परीक्षा द्वारा छांटउनकी ब्राह्मणके समस्त कर्म यताकर ब्राह्मण नाम रख दिया
और उनको सवके श्रादर सत्कारका अधिकारी ठहराया। ___ भरतने कैलास पर्वत पर ७२ जिन मंदिर बनवाये थे। भरतचक्रवर्ती छहखंड राज्य और अटूट सुखसंपत्तिके प्रांधकारी
और विषय भोगोंकी अति सामग्री होनेपर भी ये कामपुरुषार्थ साधनमें लवलीन न होकर धर्मपुरुषार्थ में लवलीन रहते और श्रात्मस्वरूपसे विमुख कभी नहिं होते थे इसीनिये लोग इन्हें (भरतजीको घरहीम वैगगी कहते थे।
इसप्रकार तीन पुरुषार्थोझा साधन करते हुये अपना जीवन बड़े सुखसे विता दिया। एक दिन दर्पणमें अपना मुख देख रहे थे कि अपने बालोंमें एक सफेद बाल दिखाई दिया उसे देख अपना बुढ़ापा आया ज्ञान अपने पुत्र अर्ककीर्तिको राज्य देकर दीक्षा धारण की। बैगग्य तो गृहस्थावस्थामें ही बढ़ा चढ़ा था