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जैनबालबोधकमंत्रियोंने विचार किया कि-भरत और बाहुवली दोनों ही चर्मशरीर है दोनों ही मोक्षमें जानेवाले हैं अतएव इन दोनोंकी तौ कुछ हानि नहिं होगी किंतु सेना व्यर्थ हो कटेंगी। इसलिये मंत्रियोंने निश्चय किया कि-सेनाका युद्ध नहिं कराकर इन दोनों भाईयोंका ही युद्ध करायाजाय । दोनों राजावोंने यह बात स्वीकार करली तक मंत्रियोंने तीन युद्ध ठहराये । १ दृष्टियुद्ध, २ जलयुद्ध,
और ३ मल्लयुद्ध । इन तीनों युद्धोंमें ही वाहुवलीने चक्रवर्तीको हरादिया। चक्रवर्तीने क्रोधित होकर बाहुवलीपर चक्र चलाया परंतु चक्र कुलघात नहिं करता सो बाहुवलीके पास जाकर वापिस चला पाया जिससे भरत बड़ा लज्जित हुआ उसको लज्जित देखकर बाहुबली संसारसे विरक्त हो गये और भरत को कहा कि मैं इस पृथिवीका राज्य नहिं चाहता इसे तुम ही रक्खो मैं तप करूंगा। __बाहुबलीके दीक्षा ले लेने पर भरतने राजधानीमें प्रवेश किया और समस्त राजा महाराजाओं द्वारा भरतका राज्याभिषेक हुआ। इस समय भरतने बड़ाभारी दान किया।
भरत चक्रवर्तीकी सम्पत्ति इस प्रकार थी-नौ निधि-काल १ महाकाल २ नैसर्प ३ पांडुक ४ पटुम ५ माणव ६ पिंगल ७ शंख ८ सर्वरत्न है । चौदह रत्न-चक्र, छत्र, दड, खड्ग, मणि, चर्म, कांकणी, ये सात तो निर्जीव और लेनापति, गृहपति, गज, अश्व, स्थपति, पटराणी, पुरोहित, ये सात सजीव रत्न थे। इनके सिवाय चौरासी लाख हाथी चौरासी लाख रथ अठारह
करोड़ घोड़े चौराली फरोड़ पैदल सेना तीन करोड़ गउये एक .. लाख करोड़ हल इत्यादि थे।