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________________ जैनवालवोधकजड़में ) मात राज है । ऊपर क्रमसे घटकर सातराजुकी ऊंचाई पर चौड़ाई एक राजू है । फिर क्रमसे बढ़कर साढे दश राजूकी ऊंचाईपर चौड़ाई पांच राजू है। फिर क्रमसे घटकर चौदह राज, की ऊंचाई पर एक राजू चौड़ाई है और ऊर्ध्व और अधादिशा 'में ऊंचाई चौदह राजू है। ३२। धर्म और अधर्म द्रव्य एक एक अखंह द्रव्य है और दोनों ही समस्त लोकाकाशमें व्याप्त हैं। ___३३ । आकाशके जितने हिस्सेको एक पुद्गल परमाणु रोक उतने श्राकाशके क्षेत्रको एक प्रदेश कहते हैं। ३४ । पुदगन्त द्रव्य ( परमाणु ) अनंतानंत हैं और वे सम लोकाकाशमें भरे हुये हैं। ___३५ । जीव द्रव्य भी अनंतानंत हैं और वे सब लोकाकाशमें भरे हुये है। ___३६ । एक जीव, प्रदेशोंकी अपेक्षा तो लोकाकाशके वरावर परंतु संकोच विस्तारके कारण अपने शरीरके प्रमाण है और मुक्त जीव अंतके शरीर प्रमाण है। मोक्ष जानेसे पहिले समुद्धात करनेवाला जीव ही लोकाकाशके वरावर होता है। ३७ । मूल शरीरको बिना छोड़े जीवके प्रदेशोंके बाहर विकलनेको समुद्धात कहते हैं। ___३८ । बहुप्रदेशी द्रव्यको अस्तिकाय कहते हैं। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और श्राकाश ये पांच द्रव्य तौ अस्तिकाय हैं। काल द्रव्य वहुप्रदेशो नहीं है इसलिये काल द्रव्य अस्तिकाय नहीं है। . ३६ । पुद्गल परमाणु भी एक प्रदेशी है परंतु वह मिलकर
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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