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________________ चतुर्थ भाग। २१ । कालद्रव्य दो प्रकारका है एक निश्चयकालद्रव्य दूसरा व्यवहार काल। • २२ । कालद्रव्यको अर्थात् लोकाकाशके प्रत्येक प्रदेशमें एक एक कालाणु स्थित है उन सबको निश्चयकाल कहते हैं । २३ । कालद्रव्यको घड़ी दिन मास आदि पर्यायोंको व्यवहारकाल कहते हैं। २४ । गुणके विकार (पलटने )को पर्याय कहते हैं । २५ । द्रव्यमें नवीन पर्यायको प्राप्तिको उत्पाद कहते हैं। २६ । द्रव्यको पूर्व पर्यायके त्याग वा नष्ट होनेको व्यय कहते हैं। ___ २७ । प्रत्यभिज्ञानको कारणभूत, द्रव्यको किसी अवस्थाकी नित्यताको ध्रौव्य कहते हैं। २८। जीव द्रव्यमें चेतना सम्यक्त्व, चारित्र आदि विशेष गुण है । पुद्गल द्रव्यमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि विशेष गुण है । धर्म द्रव्यमें गतिहेतुत्व वगेरह, अधर्म द्रव्यमें स्थितिहेतुत्व वगेरह, आकाश द्रव्यमें अवगाहनहेतुत्व वगेरह और कालद्रव्यमें परिणमनहेतुत्व वगेरह विशेष गुण हैं। २६ । प्राकाश एक ही सर्वव्यापी अखंड द्रव्य है। ३० । जहांतक जीव पुदगल, धर्म, अधर्म, काल ये पांच द्रव्य हैं उसको लोकाकाश कहते हैं और लोकसे बाहरके प्राकाशको अलोकाकाश कहते हैं। ३१ । लोककी मोटाई उत्तर और दक्षिण दिशामें सब जगह सात राजू है। चौड़ाई पूर्व और पश्चिम दिशामें मूलमें ( नीचे
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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