SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ भाग । ६७ बहुप्रदेशी हो सकता है इसकारण शक्तिकी अपेक्षा उपचारसे पुदुगल परमाणुको बहुप्रदेशी कहा गया है 1 '४० 1 भावस्वरूप गुणों को अनुजीवी गुण कहते हैं । जैसे-सम्यक्त्व, चारित्र, सुन, चेतना, स्पर्श, रस, गंध, वर्णादिक । '२१ | वस्तुके श्रभावस्वरूप धर्मको प्रतिजीवी गुण कहते हैं, जैसे -- नास्तित्व, अमूर्त्तत्व, श्रचेतन वगेरह | ४२ । अभाव चार प्रकारका है । प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव और प्रत्यंताभाव . ४३ । वर्तमान पर्यायका पूर्व पर्यायमें जा प्रभाव है उसको प्रागभाव कहते हैं । ४४. आगामी पर्यायमं वर्त्तमान पर्याय के प्रभावको प्रध्वंसा भाव कहते हैं । ४५ | पुद्गल द्रव्यकी एक वर्त्तमान पर्यायमें दूसरे पुद्गल की वर्तमान पर्यायके अभावको अन्योन्याभाव कहते हैं। ४६ । एक द्रव्यमें दूसरे द्रव्यके अभावको अत्यंताभाव कहते हैं । २०. सत्संगति. :c' मत्तगयंद सो करुगानि धर्म विचारत, नैन विना लखिको उमाहै । -सो दुरनीति धेरै यश हेतु सुधी विन आगमको अगादे ||
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy