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चतुर्थ भाग ।
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बहुप्रदेशी हो सकता है इसकारण शक्तिकी अपेक्षा उपचारसे पुदुगल परमाणुको बहुप्रदेशी कहा गया है
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'४० 1 भावस्वरूप गुणों को अनुजीवी गुण कहते हैं । जैसे-सम्यक्त्व, चारित्र, सुन, चेतना, स्पर्श, रस, गंध, वर्णादिक । '२१ | वस्तुके श्रभावस्वरूप धर्मको प्रतिजीवी गुण कहते हैं, जैसे -- नास्तित्व, अमूर्त्तत्व, श्रचेतन वगेरह |
४२ । अभाव चार प्रकारका है । प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव और प्रत्यंताभाव .
४३ । वर्तमान पर्यायका पूर्व पर्यायमें जा प्रभाव है उसको प्रागभाव कहते हैं ।
४४. आगामी पर्यायमं वर्त्तमान पर्याय के प्रभावको प्रध्वंसा भाव कहते हैं ।
४५ | पुद्गल द्रव्यकी एक वर्त्तमान पर्यायमें दूसरे पुद्गल की वर्तमान पर्यायके अभावको अन्योन्याभाव कहते हैं।
४६ । एक द्रव्यमें दूसरे द्रव्यके अभावको अत्यंताभाव कहते हैं ।
२०. सत्संगति.
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मत्तगयंद
सो करुगानि धर्म विचारत, नैन विना लखिको उमाहै । -सो दुरनीति धेरै यश हेतु सुधी विन आगमको अगादे ||