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________________ चतुर्थ भाग। करनेको श्राये, कुवेरने भगवान् जहां पर ये वहीं पर ४८ कोश लंवा चौड़ा एक सभामंडप बनाया जिसको समवशरण कहने है। समवसरण सभाने १२ समा थीं उसके बीचमें तीन कटनी. दार वेदी पर सिंहासन पर भगवान अधर विराजमान थे। दारह सभासे पहिली सभा भगवानक ८४ गणधर थे। दूसरी में कल्पवाली देवोंकी देवांगनायें, तीसरीमें श्रायिका प्रादि मनुप्योंकी स्त्रियां, चौथी में ज्योतिषी देवोंकी देवांगनायें, पांचवीने व्यंतरणी, वडोमें भवनवासिनी देवियाँ, सातवी सभा भवन चासी देव, आठवीनं व्यंतर देव, नवमीमें ज्योतिकदेव, दशवीमें कल्पवासी देव, ग्यारहवी सभामें चक्रवर्ती, राजा, महाराजा, और सर्वसाधारण मनुष्य और बारहवी सभाम सिंह गाय बैल हिरण सर्प आदि समस्त पशु पक्षी थे। भगवानके समवसरणमें किसीको भी पानेको मनाही नहीं थी, सब ही जीव धर्मोपदेश सुननेको आते थे । भगवानकी तीन वक्त सबेरे टुपहर सामको वाणी खिरती थी। वह अनतरमयी मेघगर्जनावत् दिव्यध्वनि होती थी सो समस्त प्रकारके जीव अपनी २ भाषामें समझ लेते ये जो मनुष्य नहि समझते थे वा विशेष कोई धर्म कथा सुनना होती थी, वह गणधरोंसे प्रश्न करके सब संशय दूर कर लेते थे। भगवानके वृपभसेनादि ८४ गणधर थे। शकट वनसे उठकर भगवानने कुरुजांगल, कौशल, पुंद्र, चेदि अंग वंग मगध अंत्र कलिंग आदि समस्त देशोंमें विहार करके अपने उपदेशसे असंख्य जीवोंको मोक्षमार्गमें लगाया। जब छोटे भाइयोंने भरतकी आक्षा न मान भगवानसे प्रार्थना
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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