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________________ चतुर्थ भाग। शिक्षा दी थी। इन दोनों कन्याओंको पढ़ाने के लिये ही भगवानने स्वायंभुव नामका व्याकरण बनाया था। इसके शिवाय ईद अलंकार तर्क श्रादि शास्त्र भी बनाये थे। पुत्रियोंको पढ़ानेके वाद मरतादि १०१ पुत्रोंको भी भगवानने समस्त विद्यायें पढ़ाई । इनमें कई पुत्रोंको खास करके कोई २ विद्या विशेषताके साथ पढ़ाई । जैसे-भरतको नीतिशास्त्र नृत्य शास्त्र, वृषभलेनको संगीत शास्त्र और वादन शास्त्र, अनंतविजयको चित्रकारी नाट्यकला और मकान बनानेकी विद्या विशेष प्रकारसे पढ़ाई थी। बाहुवलीको कामशास्त्र वैद्यकशास्त्र धनुर्वेद विद्या और पशुओंके लक्षणोंका जानना व रत्न परीक्षाका ज्ञान कराया था। इसी प्रकार अन्यान्य समस्त विद्यायें प्रजामें प्रचार करनेके लिये अपने पुत्रोंको पढ़ाई थीं। नाभिरायके समय जो धान्य फल स्वयं प्राकृतिक उत्पन्न • हुये थे उनमें भी रस आदि कम होने लगा और वे सब वृक्ष क्षीण होने लगे तब समस्त प्रजा महाराज नाभिके पास आई और अपने इन कष्टोंको कहा तो महाराजने सबको भगवानके पास पहुंचाया तव भगवानने आर्यखंडकी प्रजाके कष्ट दूर कर नेको और उनके कृपि आदि व्यवहार बनानेके लिये इन्द्रको आज्ञा करी और इंद्रने कृपिकार्य वा वाणिज्यादि समस्त कार्य प्रजा जनोंको वताये अर्थात् जिनमंदिरोंकी रचना की, देश प्रदेश नगर श्रादिकी रचना की, सुकोशल, अवंती, पुंद्र, अंध्र, अस्मक, रम्यक, कुरु, काशी, कलिंग, अंग, वंग, सुहन्न,समुद्रक, कश्मीर उसीनर, प्रानर्त्त, वत्स, पंचाल मालव दशार्य कच्छ मगध वि.
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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