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________________ ५४ जनवालवोधक चक्रवर्तिका जन्म हुआ और भगवानने अपने पुत्र भरतके अन्नप्राशन, मुंडनकर्म कर्णछेदन यज्ञोपवीतधारण आदि समस्त ( षोड़श संस्कार ) संस्कार विधिपूर्वक कर समस्त लोगोंको दिखाये | भरतके पश्चात् भगवानके वृपभसेन, अनंत विजय, महासेन, अनंतवीर्य, प्रच्युत, वीर, वीरवर, श्रीपेण, गुणसेन, जयसेनादिक १२ पुत्र और हुये, तथा इसी यशस्वतीदेवी से एक कन्या हुई जिसका नाम ब्राह्मी था । इनके सिवाय दुसरी स्त्री सुनंदासे बाहुवली नामके एक पुत्र मौर सुंदरी नामकी एक कन्या उत्पन्न हुई । सब मिलाकर भगवान १०३ पुत्र कन्यायोंके पिता थे । एक दिन भगवानका चित्स जगतमें अनेक भिन्न २ प्रकारको कलाओं और विद्याओंके प्रचारके लिये उद्विग्न होने लगा उसी समय उनके पास उनकी दोनों कन्यायें ब्राह्मी और सुन्दरी आई इनकी इस समय युवावस्था प्रारंभ ही हुई थी। दोनों को भगवानने अपनी गोदी में बिठाया और अ आ इ ई, यदि स्वरोंसे प्रारंभ करके अक्षरज्ञान प्रारंभ कराया और इकाई दहाई यादि से अंकगणित पढ़ाना प्रारंभ किया। भगवान ऋषभदेव के चरि त्र में अपने पुत्रोंके पढ़ानेका हाल कन्यायोंके पढ़ानेके बाद आया है इससे अनुमान होता है कि भगवानने स्त्री शिक्षाका महत्व विशेष प्रगट करने के लिये ही ऐसा किया था कि स्त्रीशिक्षा ही पुरुषशिक्षाका मूल कारण है । इन दोनों कन्याओंको व्याकरण छंद न्याय काव्य गणित प्रलंकार संगीतादि अनेक विषयोंकी ܢ
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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