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चतुर्थ भाग ।
५३.
गणित ज्योतिष, छंद शास्त्र, अलंकार, व्याकरण, चित्रकला, लेखनप्रणाली संगीतशास्त्र श्रादि समस्त विद्याओंमें पारदर्शिता प्राप्त की थी । देवबालकों के साथ समस्त प्रकारके खेल खेलते वा जल क्रीड़ा तैरना आदि मनोविनोद करते रहते थे । भगवानको वाल चेष्टायें सबको मनोमुग्धकर होती थीं । उनके समस्त प्रकारके कार्य वा चेष्टायें परोपकारार्थ ' ही हुवा करती थीं ।
युवावस्था होनेपर भगवानके पिता नाभिरायने विवाह करनेको कहा | भगवानने भी समस्त पृथिवीको अपने आदर्श चरित्रसे चलाने के लिये विवाहादि समस्त प्रवृत्ति करने के लिये विवाह की सम्मति दी । वह सम्मति केवल 'न' शब्द बोलकर - ही दो थी और महाराजने कच्छ महाकच्छ नामके दोनों राजाओंकी दो कन्या यशस्वती और सुनदासे उनका विवाह करा दिया
एक दिन महारानी यशस्वतीने पिछली रात्रिमें चार स्वप्न देखे - प्रथम स्वप्न में मेरुपर्वतद्वारा समस्त पृथिवीको निगलते हुये देखा दूसरे स्वप्न में चंद्र और सूर्य सहित मेरुपर्वत देखा । तीसरे स्वप्न में कमलों सहित एक तालाब देखा और चौथे स्वम समुद्र देखा । प्रातः काल उठकर महारानी यशस्वतीने भगवान् ऋषभ के पास जाकर स्वप्नोंका फल पूछा तौ भगवानने इन स्वप्नोंका फल छह खंडपर राज्य करनेवाले चक्रवर्ती पुत्रका गर्भ में आना बताया ।
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चैत्रकृष्ण नवमी के दिन जब ब्रह्मयोग उत्तरापाढ़ नक्षत्र तीनं लग्न और चंद्रमा धनराशिपर था तब भगवान के प्रथमपुत्र भरत