SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ भाग। ४७ ६ । समान्यगुण अनेक हैं परंतु उनमें मुख्य गुण ६ हैं जसेअस्तित्व, वस्तुत्व. द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, गुरुलघुत्व. प्रदेशवत्व । ७ । जिस शक्तिके निमित्तसे न्यका कभी नाश न हो उसको अस्तित्वगुण कहते हैं। जिस शक्तिक निमित्तसे द्रव्यमें अर्थक्रिया हो उसको वस्तुत्वगुण कहते हैं । जैसे-घड़ेकी अर्थक्रिया जलधारण है। ___EI जिस शक्तिके निमित्तसे द्रव्य सदा एकसा न रहै और जिसकी पर्याय (हालत) बदलती रहें उसको द्रव्यत्वगुणा कहते हैं। ... १० जिस शक्तिके निमित्तसे द्रव्य किसी न किसी शानका विषय हो उसे प्रमेयत्वगुण कहते हैं। ११। जिस शक्तिके निमित्तसे द्रव्यका द्रव्यपणा कायम रहे अर्थात् एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप नहिं परिणमै और एक गुण दुसरे गुणरूप न परिणमै तथा एक द्रव्यके अनेक वा अनन्तगुण विखर कर जुदे २ न हो जावें उसको अगुरुलधुत्व गुण कहते हैं। · १२। जिस शक्तिके निमित्तसे द्रब्यका कुछ न कुछ प्राकार अवश्य हो उसे प्रदेशत्व कहते हैं। १३ । जिनमें उपर्युक्त गुण हैं वे द्रव्य कुल छह हैं जैसे, जीव पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy