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जैनवालबोधक१५. चौदहवें कुलकर महाराज नाभिराय.
--- --- तेरहवें कुलकरके कुछ ही समय बाद महाराजा नाभिराय हुये । ये चौदहवें कुलकर थे। इनके सामने कल्पवृक्ष प्रायः नष्ट हो चुके थे। क्योंकि तेरह कुलकरोंका समय भोगभूमिका था। जिस समयमें और जहां विना किली व्यापारके भोगोपभोगकी सामग्री प्राप्त होती रहती है उस समयको भोगभूमिका समय कहते हैं । यह भोगभूमि महाराज नाभिरायके सम्मुख नष्ट हो गई और कर्मभूमिका प्रारम्भ हुआ अर्थात् जीविकाके लिये व्यापार आदि कर्म ( कार्य) करनेकी श्रावश्यकता हुई। ___ इस समयके लोग व्यापारादिक कार्योंसे विलकुल अपरि। चित थे। खेती आदि करना कुछ नहिं जानते थे और कल्पवृक्ष नष्ट हो जाने के कारण अपनी भूख वा अन्य जरूरतें पूर्ण करनेके लिये बड़ी चिंता हुई तव व्याकुलचित्त होकर महाराजा नाभिरायके पास आये। ___यह समय युगके परिवर्तनका था। कल्पवृक्षोंके नष्ट हो जाने के साथ ही जल, वायु, आकाश, अग्नि, पृथ्वी श्रादिके संयोगसे धान्योंके अंकुर स्वयं उत्पन्न हुये और बढ़कर फलयुक हो गये तथा अन्यान्य फलवाले अनेक वृत्त भी उत्पन्न हुये । जल पृथ्वी आदिके परमाणु इस परिमाणमें मिले थे कि उनसे स्वयं ही वृक्षोंकी उत्पत्ति हो गई परंतु उस समयके मनुष्य इन वृत्तोंका उपयोग करना नहिं जानते थे। इस कारण महाराजा नाभिरायके