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चतुर्य भाग। पास जाकर उन लोगोंने अपने सुधादिक दुःखोंको कहा और स्वयं उत्पन्न हुये वृत्तोंका प्रयोजन पूछा।
महाराज नाभिरायने उनका भय दूर कर उपयोगमें आ सकने वाले धान्य वृत्त और फलके वृत्तोंको बताया और उनको उप. योग लानेकी रीति भी बताई । तथा जो वृक्ष हानि करनेवाले थे जिससे जीवन में बाधा आती और रोग आदिउत्पन्न हो सकते थे उनसे दूर रहनेके लिये उपदेश दिया।
वह समय कर्मभूमिके उत्पन्न होनेका था । उस समय लोगों के पास वर्त्तन प्रादि कुछ भी नहीं थे अतएव महाराजा नाभिरायने हाथोके मस्तकपर मिट्टीके थाली आदि वर्तन स्वयं बनाकर अग्निमें पकाकर काममें लानेकी विधि बताई तथा नाभिराय के समयमें वालककी नाभिमें नाल लगी हुई दिखाई दी उसको काटनेकी विधि बताई। ___हाथोके माथेपर वर्तन बनाने तथा भोजन बनाना न जानने आदिके कारण इस समयके लोगोंको प्राज कलके मनुष्य विचारे असभ्य वा जंगली कहते और इसी परसे इतिहासकार परिवर्तन के इस कालंको दुनियांका बाल्यकाल समझते हैं परंतु जैन इति. हासकी दृष्टिसे उसं समयके लोग असभ्य वा जंगली नहीं थे, क्योंकि वह समय काल परिवर्तनका था। जिस प्रकार एक समाजके मनुष्योंको दुसरी समाजके चाल चलन अटपटे मालूम होते हैं और वे उनको अच्छी तरहसे संपादन नहिं कर सकते उसी प्रकार भोगभूमिके समयमें भोगोफ्भोग पदार्थ कल्पवृक्षोंसे स्वयं प्राप्त होते थे और वे मिलने बंद हो गये तो उन्हे अपना