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चतुर्थ भाग ।
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उपदेश दिया सो बड़ा उपकार किया अब तुम्हें जो इच्छा हो सो मांगों; मैं देने को तैयार हूं ।
ब्रह्मगुलालने कहा कि- महाराज वस मुझे क्षमा कीजिये मैंने संसार शरीर भोगों से नाता तोड़ दिया अब मुझे किसी भी सांसारिक वस्तुकी कुछ भी चाह नहीं है। ऐसा कह पीछो कमंडलु उठाकर वनको चल दिये । राजाने तथा राजाके मंत्राने वनमें जा कर बहुत कुछ प्रार्थना करी कि हमारा अपराध क्षमा करके चले श्रावो । जिस प्रकार सम भेष वना २ कर छोड़ते थे, उसी प्रकार यह वेप भी छोड़ दो। तुमारी वयस और यह काल मुनि होकर कठिन तपस्या करनेका नहीं है । परन्तु ब्रह्मगुलाल तौ सच्चे मुनि हुये थे, वे क्यों आने लगे ? तत्पश्चात् माता पिताने तथा स्त्रीने भी वनमें जाकर वहुत कुछ प्रार्थना की परन्तु सबको संसारकी असारताका उपदेश देकर लौटा दिया ।
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१६७ जकडी ( ७ ) जिनदासकृत ।
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राग धनाश्री ।
भूला मन मेरा, जिनवर धर्म न देवै ।
मिथ्या ठग मोह्या, कुगुरु कुमारग सेवै ॥
सेविया कुगुरु कुमार्ग रे जिय, फिरै चहुंगति, वावरौ । चार विका अनादि भाषै, सुननको जु उतावरौ ॥ -
१ बिकमा । २ सुननेके लिये ।