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जैनवाल वोधककार्तिकेयकी माताने पुत्रके सामने मुनियोंकी प्रशंसा अवश्य की थी परंतु उसे क्या मालूम था कि वह यह सब सुनकर मुनि हो जायगा । इसलिये जब उमने सुना कि कार्तिकेय तो मुनि हो गया तो बडा पश्चात्ताप करने लगी उसके वियोगसे उसे बहुत ही दुःख हुआ। शेपमें पुत्रके प्रार्तध्यानसे ही मरकर वह देवी
___ उधर कार्तिकेय मुनि घूमते फिरते एक दिन अपने वहनाईके रोहेड नगरमें आये, जेठका महीना था गर्मी खूब तेजीसे तप रही थी। अमावस्याके दिन कार्तिकेय मुनि भिक्षाके लिये राज महलके नीचे होकर जा रहे थे कि उन पर महल में बैठी हुई उनकी बहन वीरमतीकी नजर पड़ गई। उसे अपना भाई पह. चान कर उसी वक्त अपनी गोदमें शिर रखकर लेटे हुये स्वामी का शिर नीचे रखकर दौडी हुई भाके पास आई और बडी भक्तिले अपने भाईको हाथ जोड़ कर नमस्कार किया तथा अनुरागके वश हो मुनिके पावोंमें गिर पड़ी । सो उचित ही है क्योंकि प्रथम तो भाई फिर मुनि हो तव किसका प्रेम उस पर न हो । क्रौंच राजाने जब एक नंगे भिखारोके पांव पड़ते हुये अपनी रानीको देखा तो उन्हें वडा क्रोध हो पाया। इस कारण उसने अपने सेवकों द्वारा मुनिको खूब पिटवाया। यहां तक मुनिमहा. राज पोरे गये कि मारसे वेहोश हो जमीन पर गिर पड़े।. सच है पानी मिथ्याती और जैनधर्मसे द्वेष रखनेवाले लोग ऐसा कौन सा नीच कर्म है जो नहिं कर डालते ।