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________________ जैनवालबोधक ३४४ दिया । बड़े दुःखकी बात है कि जीव मोहके वशीभूत हो धर्म को भी छोड़ बैठता है । बड़ा होनेपर सुकोशलने भी अपने पिताका अनुकरण करके बड़े २ घरोंकी ३२ कन्याओंसे विवाह किया और दिन रात भोगों में बिताने लगे । माताका उसपर अत्यन्त स्नेह होनेके कारण नित्य नयी २ भोगसामग्री प्राप्त होती थी । सैकड़ों दास दासी हाजिर रहते थे । जो चाहता था वह वस्तु आंखोंक' इशारा करते ही प्राप्त होती थी । • १ उन पूछा एक दिन सुकोशल अपनी माता धाय और कई स्त्रियों सहित महलकी कृतपर बैठा २ अजोध्याको शोभाको देख रहा था । उसकी दृष्टि वहुत दूर दूर तक जारही थी । उसने एक मुनिमहाराजको आते देखा वे मुनिमहाराज सुकोशलके पिता ही थे के चदन पर कुछ भी कपड़ा न देख चकित होकर माता से कि- माता ये कौन हैं ? जिनके पास कुछ भी वस्त्र नहि हैं । सि'वार्थको देखते ही जयावतीकी आंखोंमें खून बरसने लगा उस ने कुछ घृणा और उपेक्षासे कहा कि - होगा कोई भिखारी, तुझे इससे क्या मतलव ? परंतु माता के इस उत्तरसे सुकोशजका दिल नहि भरा | माता ये तो बड़े खूबसूरत और तेजस्वी मालूम पड़ते हैं तुम इन्हें मिखारी कैसे बताती हो । जयावतीको अपने स्वामी पर ऐसी घृणा करते देख सुकोशलकी धाय सुनंदासे नहिं रहा गया। उसने कहा तुम जानती हो कि ये हमारे मालिक है और सुकोशलको मिथ्याश्रद्धान करा रही हो । यह तुम्हें योग्य नहीं। क्या होगया यदि ये मुनिं हो गये तो और भी हमारे पूज
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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