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जैनवालवोधकभेज दीजिये जो शास्त्रज्ञान धारण करनेमें समर्थ और तीक्ष्ण बुद्धि हों तो मैं हृदयस्यशास्त्रज्ञान उन्हें धारगा करा दूं । जिससे वे कुछ दिन वीर शासनको कायम रख सके।
जव यह पत्र ब्रह्मचारीके हाथ महासेनाचार्य के हस्तगत हुआ तौ पढ़नेसे वड़ा पानंद हुआ और अपने संघर्मसे पुष्पदंत और भूतबली नामके दो मुनियोंको तीक्ष्ण बुद्धि धारक समझ श्रीधर सेनाचार्यके पास भेज दिया जिस दिन प्रात:काल ये दोनों मुनि पहुंचे उसी रात्रिको प्रभात ही श्रीधरसेनाचार्य महाराजको स्वप्न हुवा कि-दो हष्ट पुष्ट सफेद वैल उनके चरणों में नमस्कार कर ते हैं इस उत्तम स्वप्नको देखकर आचार्य महाराजको वेहद प्रस. मता हुई और यह कहकर उठ बैठे कि-समस्त संदेहोंको नष्ट करनेवाली श्रुतदेवी-जिनवाणी सदा काल संसारमें जयवंत रहै।" . प्रातःकाल होते ही उन दोनों मुनियोंने जिनकी उन्हे चाह थी आकर प्राचार्य महाराजके पावों में बड़ी भकिसे अपना शिर झुकाया और प्राचार्य महाराजकी स्तुति की। प्राचार्य महाराज उनको आशीर्वाद दिया कि तुम लोग चिंरजीवी होकर भगवान् महावीर स्वामीको पवित्र शासनकी सेवा करके विस्तार करो। . अक्षान और विषयोंके दास बने संसारी जीवोंको शान देकर उन्हे कर्तव्यकी तरफ लगायो। तत्पश्चात आचार्यमहाराजने उन दोनों मुनियोंको तीनत्रक मार्ग श्रमदूर करनेके पश्चात उनकी बुद्धिको परीक्षा करनेके लिये दो साधनेके दो मंत्र विद्यायें दिये उन मंत्रोंमें दो तीन प्रक्षर न्यूना