SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२ जैनवालवोधकपर रखकर दूसरा पांव उत्तरके मानुपोत्तर पर्वतपर रक्खा . और तीसरे पावसे देवोंके विमानोंको क्षोभित करके वलिकी पृष्टपर रखके उसको काबूमें कर लिया अर्थात् बलिको बांध लिया तब देवताओंने श्राकर मुनियोंके उपसर्गको निवारण किया, पूजा वंदनादि की, पद्मराजा और चारों मंत्रियोंने विष्णुकुमार अकंप-. नाचार्यादि मुनि महाराजोंके चरणोंमें पड़कर क्षमा प्रार्थना करके अपराध क्षमा कराया। सबने जैनधर्म धारण कर श्रावकके १२ व्रत ग्रहण किये। मुनियोंके कंठ धुयेंसे फट गये थे, बड़ी तकलीफ थी, सो नगरके लोगोंने उस दिन दुधको खीरके भोजन तैयार किये और सब मुनियोंकोपाहार दिया । उस दिन श्रावण शुक्ला पूर्णमासीका दिन था, नातसौ मुनियोंकी रक्षा हुई, इस कारण देशभरकी प्रजाने परस्पर रक्षाबंधन किया और उस दिन को पवित्र दिन मानकर प्रतिवर्ष रक्षाबंधन क्षीरभोजनादिसे इस पर्वको सुरू किया। उसी दिनसे यह राखीपूर्णिमाका तिहवार चला है। अन्यमतियोंने विष्णुकुमारकी जगह विष्णुभगवान् और बलि मंत्रीकी जगह सुग्रीवके भाई बलि राजाको मानकर सनघडंत कहानी वनाली है, सो मिथ्या है। ५५. जकडी पं० दौलतरामजीकृत (१.) - अब मन मेरा चे, सीखंवचन सुन मेरा। भजि जिनवरपद वे, ज्यौं विनसै दुख तेरा
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy