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________________ चतुर्थ भाग । ३११ पुष्पदंत नामक विद्याधर तुल्लकने पूछा कि, 'भगवन् ! कहां पर किन २ मुनिमहाराजोंको उपसर्ग हो रहा है ? तब वार्य महाराजने हस्तिनापुर के वनमें अकंपनाचार्यादिके उपसर्गका समस्त वृतांत कहा । तुल्लक महाराजने पूछा कि इस उप सर्गके दूर होनेका भो कोई उपाय है ? तत्र मुनि महाराजने अवधिज्ञानसे कहा कि, धरणिभूषण पर्वतपर विष्णुकुमार नाम के मुनि है । उनको विक्रिया ऋद्धि प्राप्त हुई है। उनसे जाकर तुम प्रार्थना करो, तो वे इस उपवर्गको दूर कर सकते हैं । यह सुनते - हो उस विद्याधर जुलकने तत्काल हो विष्णुकुमार मुनिके निकट जाकर मुनिसंघ के उपसर्गको वात कही और यह भी कहा कि, आपको विक्रिया ऋद्धि है, आप समर्थ हैं । तत्र विष्णुकुमार मुनि महाराजने हाथ पसार कर देखा, तो कोसों तक हाथ लंबा होता चला गया । तत्र उसी वक्त पद्म राजा के पास गये । उसको बहुत कुछ कहा उसने कहा कि मैंने ७ दिनका राज्य बलिको दे दिया है वही उपसर्ग करता है। नव विष्णुकुमार बलिराजाके पास गये, जहां कि वह सबको इच्छित दान दे रहा था. विष्णुकुमारने बामन रूप धारण करके कुटोर बनानेको अपने पांवसे तीन पैंड जमीन मांगी। बलिने तत्कालही दे दी - विष्णुकुमारने विक्रिया ऋद्धिसे बहुत बड़ा शरीर बनाकर एक पांव दक्षिण तरफके मानुषोत्तर पर्वनपर रक्खा और एक पांव' सुमेरुपर्वत - १ अढाई द्वीप के चारों तरफ आधे द्वीपमें कोटकी तरह एक पर्वत है । वहांसे आगे विद्याधर मनुष्य भी नहीं जा सकता, इस कारण उसकी मानुषोत्तर पर्वत कहते हैं ।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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