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________________ ३१• जिन बालबोधक वे चारो मत्री कुरुजांगल देशमें हस्तिनापुर नगरके राजा 'पद्मसे जाकर मिले और उसके मंत्री हो गये। उस समय उस नगर पर कुंभपुरका राजा सिंहवल चढ़ श्राया था, सो उन चारोंमेंसे चलि नामक मंत्री अपनी चतुराईसे उस सिंहवल राजा को हराकर पकड़ लाया, तब पद्मराजाने खुश होकर बलिको मनवांछित वर मांगने का वचन दिया । चजी मंत्रीने कहा कि, मेरा वर इस समय जमा रहे, जब मुझे आवश्यकता होगी तव याचना करूंगा । राजाने तथास्तु कहकर स्वीकार किया । इसके पश्चात् कुछ दिनों में वे ही अकम्पनाचार्य अपने मानसौ मुनियोंके संघसहित हस्तिनापुरके वनमें प्राये तब वलिने १ यह बात जानकर उन मुनियोंको मारने की इच्छा से राजासे अपना वह पुराना वर मांगा कि, मुझे दीजिये। राजा पद्म, सात दिनके लिये आप अपने राजमहलो में रहने लगा । चलिने आतापन नामक पर्वत पर कायोत्सर्गसे ध्यान करते हुये मुनियों को मारनेके लिए वहींपर नरमेध यज्ञका प्रारंभ किया। उनके निकट वकरे वगेरहोंका हवन करके उसकी दुर्गंध से बडा कष्ट पहुंचाया यहां तक कि अनेक मुनियोंके उस दुर्गंधित धुंएसे गले फट गए और अनेक वेहोस हो गये । इसी समय में मिथिलापुरीके निकट एक वनमें श्रुतसागर चंद्राचार्य महाराजने श्रर्द्धरात्रि के समय श्रवण नक्षत्रको कंपायमान देखकर अवधिज्ञान से विचारकर खेदके साथ कहा कि'महामुनियोंको महान् उपसर्ग हो रहा है' उस समय पास बैठे " सात दिनका गज बलिको राजा वनाकर •
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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