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________________ चतुर्य भाग। १०९ सबने मौन धारण कर लिया है । इत्यादि निंदा व हास्यादि क. रके मंत्रीगण राजाके साय नगरको और लोटे, किंतु मार्गमें उसी संघके श्रुतसागर नामक मुनि नगरीसे चर्या करके वनको पाते थे। उनको सम्मुख देखकर उन बारों मंत्रियोंने कहा कि देखिये महाराज! यह भी एक तरुण वलोवर्द्ध पेट भरके श्रा रहा है । युतसागर मुनिने इस पर मंत्रियोंको अच्छा मुंहतोड़ जवाब दिया और पोड़े विवाद करके राजाके सम्मुख ही उन्हें अनेकांत वादसे हरा दिया। जिससे कि, वे बड़े लजित हुए। पोहे संघमें पहुंच कर श्रुतसागरने प्राचार्य महाराजको यह सब वृत्तांत कह सुनाया । आचार्य महाराजने कहा कि, तुमने बहुत बुरा किया । समस्त संघपर तुमने बडी भारी विपत्ति ला दी। प्रस्तुः श्रय प्रायश्चित्त यही है कि, तुम उसी वादकी जगह पर जाकर कायोत्सर्ग पूर्वक ठहरो और जो जो उपसर्ग आत्रे उन्हें सहन करो। आशा पाकर श्रुतसागरने ऐसा ही किया । और रात्रिको वे चारो मंत्री समस्त संघको मारनेका संकल्प करके आये। परंतु मार्गमें अपने असली शत्रु युतसागर मुनिको देखकर ये चारोंके चारों खड्ग लेकर पहिले उसीपर टूट पडे । किंतु उस जगहके वन देवतासे यह अन्याय देखा नहीं गया। इसलिये उसने मुनिको मारनेके लिये हायमें तलवार उठाये हुए उन चारों मंत्रियोंको जहांका नहां कील दिया अर्थात् वे चारो पत्यर जैसे हो गये और मुनिको नहीं मार सके। प्रात:काल हो यह वृत्तांत राजाने सुना तो उसने उन चारोंका काला मुँह करके और गधेपर सवार करके देशसे निकाल दिया। '
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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