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________________ ३०८ जैनवालवोधक ५४. राखी पूर्णिमा। अवन्ती देश उज्जयनी नगरीमें राजा श्रीवर्मा था। उसकी राणी श्रीमती थी। उसके बलि, बृहस्पति. प्रह्लाद और नमुचि ये ४ मंत्री थे। ये सव भिन्नधर्मी थे । उस नगरीके बाहर उद्यान में एक समय समस्त शास्त्रोंके जाननेवाले, दिव्यज्ञानी अकम्पनाचार्य सातसौ मुनिसहित पधारे । संघाधिपति प्राचार्य महाराजा ने संघके समस्त मुनि गोंसे कह दिया कि, यहां राजा वगेरह कोई लोग आवें, तो किसीसे भी बोलना नहीं, सब मौन धारण करके रहना । नहीं तो संघको उपद्रव होगा। ___ उस दिन राजाने अपने महल परसे नगरके स्त्री पुरुषोंको पुष्पाक्षतादि लिये जाते हुये देखकर मंत्रियोंसे पूछा कि,-ये लोग विना समय किस यात्राके लिये जाते हैं ? मंत्रियोंने कहा कि, नगरके वाहर नग्न दिगम्बर मुनि आये हुए हैं, उनकी पूजा के लिये ये सब जाते हैं । राजाने कहा कि चलो अपन भी चलकर देखें कि वे कैसे मुनि हैं। तव राजा भी उन. मंत्रियों सहित बनमें गया। वहां सबको भक्ति पूजा करते हुये देखकर राजाने भी नमस्कार किया परन्तु गुरुकी आज्ञानुसार किसी भी मुनिने राजाको आशीर्वाद नहीं दिया। यह क्रिया देख राजाको कुछ क्षोभ और सन्ताप हुआ। तब मंत्रियोंने अवसर पाकर कहा कि-महाराज! ये सब मूर्ख वलीवर्द्ध हैं, इनको बोलना नहीं पाता है,इसी कारण छलसे
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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