________________
चतुर्य माग। तथा छियालीस दोष टालकर कुलीन श्रावकके घर तप चढ़ानेके लिये तनको पुष्ट नहीं करनेवाले नौरस आहार लेकर एपणा समिति पालन करते हैं। और पवित्र मान और संयमके उपकरण शास्त्र और पीछी कमंडलुको देखकर उठाते और घरते हुये प्रादाननिक्षेपण समिति पालते हैं और जीवरहित स्थानको देखकर मलमूत्रादि क्षेपण करके व्युत्सर्ग समिति पालने
सम्यक प्रकार निरोधि मनवचकाय आतम पावते । तिन सुथिर मुद्रा देखि मृग गन, उपल साज सुजावते ।। रसरूपगंध तथा फरस भरु, वन्द शुम असुहावने। तिनमें न राग विरोष, पंचेंद्रिय जयनपद पावने।।2।।
इसके सिवाय मनवचकायको भने प्रकार वश करके तीन गुप्तिका पालन करते हुये भात्माका ध्यान करते हैं। जिनको स्थानमें निश्चल पत्थर समान देखकर हिरण अपनी माज सुजावते रहते है। और पंचेद्रियोंके विषयोंमें प्रयादम्वाद लेनेप देखने, गंध लेने, स्पर्शन करने वा शन्दमुननेमें वा सुहावने प्रसुहावने पदायोमें रागद्वेप छोडकर पांचों इंद्रियोंको जय करके पंचेंद्रिय अयन पदको पाते है ॥४॥ समता सम्हारे श्रुति डाचरे, वंदना जिनदेनको । नितकरें श्रुतरति धरै प्रविक्रम, तजे तन महमेषको । जिनके न हौन न दंत पोवन, लेख अंबर आवरन । प्रवाहि पिछली रयनिमें कछु, शयन एकासन करन ॥५॥.