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चतुर्यभाग खुल गया। कोटपालने उसी वक चारो :ोर घुड़सवार दोडाये और उनको तत्काल ही शिरश्छेदन करनेका हुकुम दिया । । ये दोनों भाई अपने देशकी तरफ भागे जा रहे थे। सवेरा हो चला था, कुछ २ अंधेग था.। उस समय पीछेसे' घोड़ोंकी टापें सुनाई दी तो दोनों घबड़ाये। निष्कलंकने कहा कि अब हम किसी प्रकार भी नहीं बच सकते । भाई तू बड़ा विद्वान है। यदि तू जीता रहेगा तो अकेले ही जिनधर्म और समाजका बहुत कुछ कल्याण कर सकता है. सो मेरी समझमें तो तू झटपट इसा तालावमें डूबकर वैठ जा. जहां तक बना में भी अपने बचनेका उपाय करूंगा। यह बात सुनकर अकलंकदेव त्वरित ही तालाय. में डूबकर कमलपत्रोंसे अपना मुख ढककर महामंत्रका जप करने लगे। वहीं परं एक धोबीका लड़का खडा था। उसने इस प्रकारकी क्रिया देखकर निष्कलंकले उसका कारण पूटा तो उसने उत्तर दिया किं, इन,घोड़ों पर शत्रुओंकी सेना आ रही "है। मार्गमें जो मिलता उसीको मारती चली आती हैं। यदि तुझे अपने प्राण बचाने हों तो, भाग । यह बात सुनकर धावी का लडका भी निष्कलंकके साथ भागने लगा । दैवयोगमे इस धोवीके लडकेकी सूरत सकल व कद भी प्रकलंक देवसे मिलता था, इसलिये घुडसवारोंने क्रोधके तीय वेगमें कुछ भी ध्यान न देकर त्वरित ही उन दोनोंको मार डाला और वहीं उन्हें गडवा दिया। इधर राजाने प्रातःकाल ही उनके.मारनेकी खवर मंगाई; तो कोटवालने उनके भागने वगैरहका कुछ मी : :समाचार न भेजकरानको मारडालनेकी सूचना कर दी।..