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जैनवाजवोधक'को विध्वंस करनेकी इच्छासे बौद्धविद्यार्थीका वेष बनाकर हमारे 'धर्मको जाननेके लिये आया है। सो उसका पता लगाकर उसे ' शीघ्र मरवा डालना चाहिये, नहीं तो हमारे धर्मको बड़ी हानि "पहुंचावेगा।
: ऐसा विचार कर उसने नानाप्रकारसे सब. विद्यार्थियोंकी 'परीक्षा की, परन्तु वे दोनों भाई नहीं पहिचाने गये । अन्तमें संव विद्यार्थियोंके सो जाने पर अचानक ही कांस्यपात्रोंको पटककर विजलीकासा भयंकर शब्द किया, जिससे सव विद्यार्थी चौंककर बुद्धदेवका स्मरण करने लगे। परन्तु जिनभक्त प्रक• लंक निष्कलंकके मुखसे णमो अंरहंता इत्यादि मंत्रका उच्चा..
रण हो गया, जिससे बौद्धगुरुने उन दोनोंको पहिचान लिया 'कि-'ये ही दोनों जैन हैं. तत्पश्चात राजासे उनकी शिकायत
करके उन्हे पकडवा दिया और राजाने रात्रिको सख्त पहरे में • रखकर प्रात:काल ही शूलीपर चढ़ानेका हुकुम दे दिया।
..अर्द्धरात्रिके समय निष्कलंकने अकलंकदेवसे कहा कि, भाई 'प्रातःकाल ही अपन दोनों मारे जायगे, मुझे मरनेका तो भय,
रंचमात्र भी नहीं है। परंतु हमने जिस अभिप्रायसे महापरिश्रम - करके विद्याध्ययन किया था, उससे जैनशासनका कुछ भी. उपकार नहिं कर सके, इसी वातका मुझे अतिशय दुःख है। अकलंकने धैर्य देकर कहा कि, तुम इस संकटका कुछ भी भय. : मत करो। मैंने मन्त्रवलसे सबको निद्रावश कर दिया है । चलो इसी समय यहांसे निकल चलें। ऐसा विचारकर दोनों भाई कैदखानेसे निकल गये। किंतु जब पहरा बदला गया, तो भेद