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________________ હેર जैनवालबोधक ' जोड़कर माता पिता से प्रार्थना की कि, प्रापने तो हमें रविगुप्तमुनिकी साक्षी से ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण कराया था, अब आप विवाहकी चर्चा क्यों चलाते हैं ? पिता माताने कहा कि, उस समय तुमचे थे, वह व्रत हमने कौतुकसे दिलाया था और सो भी केवलमात्र आठ दिनके लिये था। क्योंकि हमने भी तो उस समय ८ दिनका ब्रह्मचर्यव्रत लिया था । तब दोनोंने कहा कि कहीं व्रत ग्रहण कराने में भी हंसीठट्ठा होता है ? दूसरे आपने ८ दिनकी बात उस समय प्रगट नहीं की थी, हमने तो उसी समय यावज्जीव ब्रह्मचर्यकी प्रतिष्ठा करली थी । सो श्रव हम उसेतोड़ेंगे नहीं। मंत्रीने इसप्रकार पुत्रोंकी व्रतकी दृढ़प्रतिक्षा देख विबाहकी चर्चा छोड़ उन दोनों भाईयों को बड़े २ विद्वान् उपाध्यायोंकी से बामें रखकर जिनधर्म व संस्कृतविद्याका पूर्णतया अभ्यास कराया जिससे वे दोनों भाई वालकपनमें ही द्वितीय विद्वान् हो गये । उस समय इस आर्यावर्त्तमें वौद्धधर्मकी बड़ी उन्नति थो । ऐसे बहुत ही कम· विद्वान थे, जो बौद्धाचार्योंके सामने बाद विवादमें ठहर सकं । वौद्धोंने अनेक राजावोंको भी अपने धर्म में दीक्षित कर लिया था, और राजाका जो धर्म होता है वही प्रायः प्रजाका हुआ. करता है, इस कारण इस भारतवर्ष के प्रायः सबही देशमें बौद्धधर्मका प्रबल प्रताप विस्तृत था । उस समय उन धर्मवत्सल दोनों भाइयोंने विचार किया कि, अपन दोनों बौद्ध . शास्त्रोंका पठन करके बौद्धमतसे परिचित होनेपर वौद्धोंके: धर्माभिमानी पंडितोंको वादविवादमें परास्त करके इस देशसे 1
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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