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________________ चतुर्य माग। १६ । साध्यसाधनके अविनामाव संबधको व्यानि कहते हैं। अर्थात्-जहाँ जहां साधन ( हेतु ) हो, वहां वहां सायका होना और जहां२ साध्य नहीं हाय वहां २ साधनके भी न होनेको अविनाभाव संबंध कहते हैं। जैसे-जहां २ वृम है यहां २ अग्नि है और जहां २ अग्नि नहीं है वहां वहां धृम भी नहीं है। २० जो माध्यके विना न दो उसे साधन (हेनु) कहते हैं। जैसे-अग्निका हेनु ( साधन ) धूम है। २१ । इष्ट अवाधित और असिद्ध पदार्थको साध्य कहने हैं। २२ । वादी प्रतिवादी दोनों ही जिसको सिद्ध (निश्चय) करना चाहे उसको इष्ट कहते हैं। २३। जो दूसरे प्रमाणोंसे वाधित न हो अर्थात् पंडित न हो उसे अबाधित कहते हैं। जैसे, अग्निमें ठंडापन साधना प्रत्यक्ष प्रमाणसे बाधित है इस कारण यह ठंडापन साध्य नहीं हो सकता। २४। जो दूसरे प्रमाणोंसे सिद्ध न हो अथवा जिसका निश्चय न हो उसे प्रसिद्ध कहते हैं। २५॥ साधनके द्वारा ( हेतुसे ) साध्यके प्रान होनेको अनु. मान कहते हैं। संसदीप हेतुको हेवामास कहते हैं। हत्यामास चार प्रकारका है, १ असिद्धहेत्वाभास.२ विरुद्धहेत्वाभास, ३ अनेकांतिफहेत्वामास ( व्यभिचारी हेत्वाभास )और ४ अकिंचित्कर. इत्यामास।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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