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________________ २२ जैनवालबोधक___ २७ । जिस हेतुके अभावका (न होनेका) निश्चय हो अथवा उसके सद्भाव (होने में ) संदेह (शक ) ही उसको प्रसिद्ध हेत्वाभास कहते हैं । जैसे,-"शब्द नित्य है, क्योंकि शब्द नेत्रका विषय है" परंतु शब्द कर्णका विषय है, नेत्रका विषय नहिं हो सकता इस कारण 'नेत्रका विषय यह हेतु देना प्रसिद्धहेत्याभास है। २८॥ साध्यसे विरुद्ध पदार्थके साथ जिस हेतुकी व्यानि हो उसे विरुद्धहेत्वाभास कहते हैं। जैसे,-"शब्द नित्य है क्योंकि परिणामी (क्षण क्षणमें पलटनेवाला ) है. इस अनुमानमें परिणामी हेतुकी व्याप्ति अनित्यफे साथ है, नित्यके साथ नहीं इस. लिये नित्यत्वका परिणामी हेतु देना विरुद्धहेत्वाभास है। ___ २६ । जो हेतु पक्ष, सपत्न, विपक्ष इन तीनोंमें व्यापं उसको अनेकांतिक ( व्यभिचारी) हेत्वाभास कहते हैं। जैसे,-"इस कमरेमें धूम है क्योंकि इसमें अग्नि है।" यहां अग्नि हेतु पत्त सपक्ष विपक्ष तीनोंमें व्यापक होनेसे अनेकांतिकहेत्वाभास हो गया। ३० । जहां साध्यके रहनेका शक हो उसे पक्ष कहते हैं। जैसे ऊपरके दृष्टांतमें कमरा। ३१ । जहां साध्यके सद्भावका (मोजूदगीका ) निश्चय हो उसे सपक्ष कहते हैं. जैसे धूमका सपक्ष गीले ईधनसे मिली हुई अग्निवाला रसोई घर है। ३२ । जहां साध्यके प्रभावका (गैर मोजूदगीका ) निश्चय हो उसे विपक्ष कहते हैं जैसे अग्निसे तपा हुवा लोहेका गोला। ३३ । जो हेतु कुछ भी कार्य (साध्यकी सिद्धि) करनेमें
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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