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________________ २०. जैनवालबोधक ६ | द्रव्य क्षेत्र काल भावकी मर्यादा लिये हुये जो दुसरेके मनमें तिष्ठते हुये रूपी पदार्थको स्पष्ट जाने उसे मन:पर्यय ज्ञान कहते हैं । १० । केवल ज्ञानको सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं । ११ । जो त्रिकालवर्त्ती समस्त पदार्थों को युगपत् (एकसाथ) स्पष्ट जाने उसे केवलज्ञान कहते हैं । १२ । जो दूसरे की सहायता से पदार्थको स्पष्ट जाने उसे परोक्ष प्रमाण कहते हैं । १३ । परोक्ष प्रमाण पांच प्रकारका है। स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम | १४ | पहले अनुभव किये हुये पदार्थके याद करनेको स्मृति कहते हैं। १५ । स्मृति और प्रत्यक्षके विषय भूत पदार्थोंमें जोडरूप ज्ञानको प्रत्यभिज्ञान कहते हैं। जैसे -- यह वही मनुष्य है जिसे कल देखा था । इसके एकत्व प्रत्यभिज्ञान, सादृश्य प्रत्यभिज्ञान यादि अनेक भेद हैं। १६ । स्मृति और प्रत्यक्षके विषय भूत पदार्थमें एकता दिखाते हुये जोडरूप ज्ञानको एकत्व प्रत्यभिज्ञान कहते हैं। जैसे - यह वही मनुष्य है जिसे कल देखा था । १७ | स्मृति और प्रत्यक्ष के विषयभूत पदार्थों में सदृशता दिखाते हुये जोड़रूप ज्ञानको सादृश्य प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । जैसे - यह गौ गवयके ( रोजके ) सहश है । १८ । व्याप्तिके ज्ञानको तर्क ( चिंता ) कहते हैं ।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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