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चतुर्थ भाग ।
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कालका) पांचवां विभाग वर्क्स रहा है, इसके इक्कीस हजार वर्षमें से २४५० के करीब यीत चुके हैं। इसके पहिले चौथा काल ( जिसमें तीर्थकरादि ६३ शलाका पुरुष हो गये हैं। बीत चुका है, उस कालकी आदि अर्थात् तीसरे कालके अंत में जब एक पन्य रहजाता है, उसमें १४ कुलकर होते हैं वहाँसे इतिहासका प्रारंभ होता है ।
७. प्रमाण ।
१ | सच्चे ज्ञानको प्रमाण कहते हैं, प्रमाणके दो भेद हैं, एक प्रत्यक्ष प्रमाण दूसरा परोक्ष प्रमाण ।
२। जो पदार्थोको स्पष्ट जाने उसको प्रत्यक्ष प्रमाण कहने है, प्रत्यक्ष प्रमाण दो प्रकारका है एक सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष, दूसरा पारमार्थिक प्रत्यक्ष |
३ | जो ज्ञान इंद्रिय और मनकी सहायता पदार्थको एक देश स्पष्ट जाने उसे सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं।
४ । जो ज्ञान बिना किसीकी सहायता के पदार्थको स्पष्ट जाने उसे पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं ।
५ । पारमार्थिक प्रत्यक्ष दो प्रकारका है । एक विकल पारमार्थिक दूसरा सकल पारमार्थिक |
६ । रूपी पदार्थोको विना किसीकी सहायताके स्पष्ट जाने उसे विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं ।
७ । विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष भी दो प्रकारका है। पकका नाम अवधिज्ञान, दूसरेका नाम मनःपर्यय ज्ञान है ।
८ | द्रव्य क्षेत्र काल भावकी मर्यादा लिये जो रूपी पदार्थोको स्पष्ट जानें उसे श्रवधिज्ञान कहते हैं