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________________ २७१ चतुर्थ भाग। प्राप्त हो जाय उस जन्मको उपपाद जन्म कहते हैं। ५८। माता-पिताके श्रोणित शुक्रसे जिनका शरीर धनै उनके जन्मको गर्भ जन्म कहते है। ५६ । जो माता-पिताको अपेक्षाके विना घर उधरके परमाणुओंको शरीररूप परिणमावै उसके जन्मको सम्मूर्छन । जन्म कहते हैं। ६० नराकियोंके उपपाद जन्म होता है । जरायुज अंडस पोत ( जो योनिसे निकलते ही भागने दौड़ने लग जाते हैं और 'जिनके ऊपर जेर वगेरह नहिं होतो) जीवोंके गर्म जन्म होता है और शेषजीवोंके सम्मूर्छन जन्म ही होता है। १। नारकी और सम्मूर्छन जीवोंके नपुंसक लिंग होता है। देवोंके पुंलिंग और स्त्रीलिंग और शेष जीवोंके तीनों लिंग होते हैं। . ४८. श्रीसमन्तभद्राचार्य । विक्रम संवत् १२५ के लगभग दक्षिण कांची देशमै व्याकर‘णादि समस्त प्रकारके शास्त्रोंके रचयिता और दुर्दर तपके कर्ता 'श्रीसमन्तभद्र नामके महा मुनि थे। एक समय तीव्र असाता कर्मके उदयसे उनको भस्मक व्याधि हो गई। इस रोगसे जव ११ भस्मक व्याधि होनेसे जितना खाया जाता है. उतना हो भस्म (हजम ) हो जाता है और यह अनेक दिनतक अच्छे २ माल सानेते ही दूर होता है। -
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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