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________________ २७० जैनवालवोधक- . करनेको संयम कहते हैं। संयम-सामायिक, वेदोपस्थापना, 'परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसापराय, यथाख्यात, संयमासंयम और 'असंयम भेदसे सात प्रकारको है । ____४६ । दर्शनमार्गणा, चक्षुर्दर्शन, अचतुर्दर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन भेदसे चार प्रकारकी है। ५०। लेश्या मार्गणा कृष्ण, नील, कापोत, पोत, पद्म, शुक्ल भेदसे छह प्रकारकी है। ५१। भव्यमार्गणा भव्य श्रभव्य भेदसे दो प्रकारको है। .. ५२ । तत्त्वार्थ श्रद्धानको सम्यक्त्व मार्गणा कहते हैं। सम्यः । क्व मार्गणा ६ प्रकारको है। उपशम सम्यक्त्व, क्षयोपशम सम्य. 'यत्व, क्षायिकसम्यक्त्व, सम्यमिथ्यात्व,सासादन और मिथ्यात्व ! ..५३ । जिसमें संज्ञा हो उसको संझो कहते हैं। द्रव्य मनके द्वारा शिक्षादि ग्रहण करनेको संशा कहते हैं । संघीमार्गणा संत्री असंक्षी भेदसे दो प्रकारकी है। .। ५४ । औदारिक आदिक शरीर.और पर्याप्तिके योग्य पुद्गलों के ग्रहण करनेको आहार कहते हैं । आहार मार्गणा पाहारक अनाहारक भेदसे दो प्रकारकी है। . ५५ । विग्रहगति और किसी २ समुद्घातमें और प्रयोग केवली अवस्था में जीव अनाहारक होता है। ५६ जन्म तीन प्रकारका होता है। उपपाद जन्म, गर्भजन्म, और सम्मूर्छन जन्म। +५७। जो देवोंकी उपपादशय्या तथा नारकियोंके योनि स्थानमें (उत्पत्ति स्थानमें) पहुंचते अंतर्मुहूर्तमें युवावस्थाको
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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