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________________ २६८ जैनवालवाधकऔर वनस्पतिमें जन्म लेनेवाले जीवोंको स्थावर कहते है। ३४। पृथिवी आदिकसे रुक जाय वा दूसरोंको रोकै उसको 'चादर जीव कहते हैं। ३५ । जो पृथिवी श्रादिकसे स्वयं न रुकै और न दुसरे पदार्थो को रोकै, उसको सूक्ष्म जीव कहते हैं। __ ३६ । शरीरका जो एक हो स्वामी हो उसको प्रत्येक धनस्पति कहते हैं, प्रत्येक वनस्पति सप्रतिष्ठित अप्रतिष्टित भेदसे दो प्रकारका है। ___३७। जिस प्रत्येक वनस्पतिके आध्रय अनेक साधारण वनस्पति शरीर हों उसको सप्रतिष्टित प्रत्यक बनस्रति कहते है। ३८ । जिस प्रत्येक वनस्पतिके श्राश्रय कोई भी साधारण वनस्पति न हो, उसको अप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं । ३६ | जिन जीवोंके श्राहार, श्वासोच्छ्वास, प्रायु और काय ये साधारण (समान अथवा एक ) हों उनको साधारण कहते हैं। जैसे कंद मूलादिक। ४० । पृथिवी अप, तेज, वायु, केवली भगवान, आहारक शरीर, देव, नारकी इन पाठको छोड़कर समस्त संसारी जीवोंक शरीरोंमें साधारण अर्थात् निगोद रहता है। निगोद दो प्रकार का है। एक नित्यनिगोद दूसरा इतरनिगोद । ४१जिसने कभी भी निगोदके सिवाय दूसरी पर्याय नहि पाई अथवा जिसने कभी भी निगोदके सिवाय दुसरी पर्याय न तौ पाई और न पावैगा उसको नित्यनिगोद कहते हैं। ४२ । जो जीव नित्यनिगोदसे निकलकर दूसरी पर्याय पाकर
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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