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________________ जैनालबोधकको पधारे और इन्द्रभूतिगणधरने शुक्लध्यानके प्रभावसे केवल शान प्राप्त करके १२ वर्षतक धर्मोपदेश किया और अन्तमें अविनाशी मोक्षपदकी प्राप्ति की।. : ... . ४७. जीवके असाधारण भावादि। . : : : - S: - . ...१। जीवके श्रीपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशामिक, औदयिक और पारिणामिक इस प्रकार पांच असाधारण भाव है। - जो किसी कर्मके उपशमसे हो, उसे औपशमिक भाव कहते हैं । औपशमिक भाव दो प्रकारके होते हैं। एक सम्यक्त्व भाव, दुसरा चारित्र भाव। : .... .:.३। जो किसी कर्मके क्षयसे उत्पन्न हो उसे 'सायिकभाव कहते हैं। क्षायिक भाव नौ प्रकारका है। क्षायिक सम्यक्त्व, शायिफेचारित्र, क्षायिकदर्शन; नायिकशान, क्षायिकदान, क्षायिकलाभ, नायिकभोग, क्षायिक उपभोग और. क्षायिकवीर्य।. . . . ४.जो कर्मोंके क्षयोपशम होनेसे हो, उसको क्षायोपशमिकभाव कहते हैं । क्षायोपशमिक भाव अंठारह प्रकारका होता है। सम्यक्त्व, चारित्र, चंचुर्दर्शन; अंचतुर्दर्शन, अवधिदर्शन, देशसंयम, मतिज्ञान, श्रुतंझान, अंबंधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, कुमति शीन, कुंश्रुतज्ञान, कुअंबंधिज्ञान, दान, लाभ; भोग, उपभोग . वीय। .. ५। जो काँक उदयसे उत्पन हो उसे औदयिकभाव कहते
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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