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. जैनवालबोधकपरन समय सन्यास धारि, तसु दोप नसावे ।। यों श्रावक व्रत पाल, स्वर्ग सोलम उपजावे । तहत चय नर जन्म पाय, मुनि हो शिन जावे ॥१५॥
अव चार शिक्षावतको कहते हैं। प्रथम तौ प्रतिदिन प्रात: काल और संध्याकाल अपने हदयमें समता भाव धर कर सामायिक किया करै । दूसरे-महीनेकी दो आ दो चतुर्दशीके दिन समस्त पापारंभ छोड़कर प्रोषध (एकासना) करना चाहिये । तीसरे भोग उपभोगमें आनेवाले पदार्थोका परिमाण कर लेना चाहिये । चौथे-मुनि आदि अतिथियोंको आहारदान देकर भोजन करै । इस प्रकार चारह व्रत धारण करके सबके पांच २ अतीचार (दोष ) हैं उनकोन लगावै । और मरन समयमें मुनिव्रत धारण.. करै तौ सोलवें स्वर्गको जावै और स्वर्गसे चयकर मनुम्य भवमें मुनिव्रत धारण करके मोक्षको जावै ॥ १५ ॥
४६. इन्द्रभूतिगणधर ।
हे बालको ! तुम चौवीसर्वे तीर्थकर भगवान वईमानस्वामी का चरित्र पिछले ४२वें पाठमें पढ़ चुके हो। उसमें तुम्हें बतलाया गया है कि, वर्धमान भगवान्के इन्द्रभूति आदि ११ गणधर थे। इस पाठमें तुम्हें उन्हीं इन्द्रभूतिगणधरका चरित्र पदाया जाता है।
.. इन्द्रभूतिका दूसरा नाम गौतम भी है। इसका कारण यह
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