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जैनवालयोधकपर छोड दिया : परन्तु मुनिके तपके प्रभावसे वे कुत्ते कुछ न कर सके और प्रदक्षिणा देकर मुनिके समीप जा बैठे। तब राजा अतिशय कुपित होकर एक मरा हुआ सांप मुनिके गलेमें डाल कर वहांसे चला आया। तीन दिनतक यह बात उसने सर्वथा छुपा रखी, किसीसे भी नहीं कही, परन्तु चौथे दिन रात्रिको गनी चेलिनीसे जैन मुनियोंकी हँसी करते हुए यह वात भी कह दी। जिसे सुनकर रानीको अतिशय दुःख हुमा। उसने .एक बड़ी भारी आह खींचकर कहा, कि-स्वामिन् ! आपने बड़ा बुरा कर्म किया, व्यर्थ ही आपने अपने आत्माको नरकमें पटका। निम्रय मुनियोंको कष्ट पहुंचानेके समान संसारमें कोई अन्य पाप नहीं है । यह सुनके श्रेणिकने कहा, कि, क्या वे उस सांपको • गलेमेंसे निकालके अन्यत्र नहीं जा सके होंगे? रानीने कहा,
नहीं ! वे महामुनि स्वयं ऐसा नहीं कर सकते । जब तक उनका : उपसर्ग निवारण न होगा तबतक वे महामुनि वहां ही अचल
___ यह सुनके मुनियोंकी ऐसी वृत्तिपर बड़ा भारी आश्चर्य किया। इसलिये कौतूहलवश उसी समय अनेक दीपकोंका प्रकाश कराके सेवकों और रानी चेलिनीके साथ राजा श्रेणिक उसी समय वहां गया, जहां उक्त महामुनिको देखा था। पहुंच कर देखा तो, महामुनि ज्योंके त्यों ध्यानस्थ हो रहे हैं, और सांप - भलेमें पड़ा हुआ है। उनकी शांतिमय ध्यानमुद्राको देखकर -रामाका हृदय भक्तिसे भीग गया, रानीने पड़े यत्नके साथ
सांपको अलग करके समयोचित पूजा की और शेष रात्रि वहीं "विताई।