SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ भाग। २५१ राजा श्रेणिकके नंदश्रीके अतिरिक्त एक चेलिनी नामकी दूसरी रानी थी, जिसने कि अपने रूप और गुणों के कारण पट्टरानीका पद पाया था। यह वैशाली नगरीके (सिन्धुदेशक ) राजाचेटक की कन्या थी । उस समय सिन्धुदेशमें जैनधर्मका अधिक प्रचार था, वौद्धधर्मका वहां प्रवेश ही हुआ था। राजा चेटक जैनी था, और इसीलिये रानी चेलिनीकी जैनधर्ममें अतिशय प्रीति और श्रद्धा थी। __ राजा श्रेणिकको जैनधर्मसे बहुत घृणा थी. और इस कारण वह चाहता था कि, रानी चेलिनी भी किसी तरह वौद्ध हो जाचे.. परन्तु उसके सब उपाय निष्फल होते थे, क्योंकि वेलिनीके चित्तमें जैनधर्मके आगे वौद्धधर्मका महत्व स्थान नहीं पाता था। और यह उसकी शक्तिले दाहरकी बात थी कि, वह चेलिनीका इसी कारणसे तिरस्कार करने लगे, अथवा अपने प्रेमको न्यून कर सके। क्योंकि चेलिनीके रूप और गुण अद्वितीय थे। रानी चेलिनी भी चाहती थी कि, मेरा पति हिली प्रकारसे जनी हो जावे और कल्याणके मार्गमें लग जावे तो बहुत अच्छा हो जिससे मेरे पतिका जन्म सफल हो जावे । इस कारग राजा को प्रतिबोधित करनेके लिये वह भी समय २पर प्रयत्न किया करती थी। ___ एक दिन राजा श्रेणिक शिकार खेलनेको जंगलमें गया था। वहांसे लौटते समय एक स्थानमें यशोधर नामके एक दिगम्बर मुनिको तपस्या करते हुए देखकर उसके हृदयमें धर्मद्वेयको श्राग धधक उठी । इसलिये उसने अपने शिकारी कुत्तोंको मुनिराज
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy