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________________ २५० जैनवालबोधक मुख्यरानी के गर्भ से श्रेणिकने जन्म लिया था । थेगिक वालकपन से ही अतिशय बुद्धिमान और पराक्रमी जान पड़ता था । उसको मुखमुद्रा देखकर प्रत्येक ज्योतिपी तथा भविष्यद्वक्ता यही कहते थे, कि उपश्रेणिकके पीछे यहां राजा होगा । परन्तु उपश्रेणिकको यह वात इट नहीं थी कि, मेरे राज्य करते अधिकारी श्रेणिक होवे | वह अपने पीछे अपनी प्यारी राणी तिलकावती के पुत्र चिलातीको राजा बनाना चाहता था। क्योंकि तिलकावती से विवाह के प्रथम वह प्रतिक्षा कर चुका था कि, तेरे गर्भसे जो पुत्र उत्पन्न होगा, वही राजगृहीका राजा होगा। इसलिये उसने एक. झूठमूठ अपराध लगाकर श्रेणिकको देश निकाला दे दिया। श्रेणिकको वालकपनसे वौद्धधर्ममं श्रद्धा नहीं थी. परन्तु राजगृहीसे निकल कर जब वह नन्दिनामके सभामंडपमें गया और वहां वौद्धगुरु जठराशिका उपदेश सुना तो वौद्धधर्मपर उस का दृढ विश्वास हो गया । नन्दिग्रामसे एक इन्द्रदत्त नामक वणिक् के साथ वह वेणातड़ाग ग्रामको गया और वहां इन्द्रदत्त की बुद्धिमती कन्या नन्दनो के साथ विवाह करके सुख से रहने लगा । वहां नन्दीसे उसके एक परम रूप गुणवाला प्रभयकुमार पुत्र हुश्रा । यहाँ उपश्रेणिक चिलातीपुत्रको राज्य देकर मर गया और चिलातीपुत्र राज्य करने लगा। परन्तु थोड़े ही दिनोंमें उसके अन्याय और अत्याचारोंसे राजगृहीकी प्रजा ऊब उठी, इसलिये राज्य के मंत्रियोंने श्रेणिकके पास एक पत्र भेजकर उसे बुला लिया और अपना राजा बना लिया । श्रेणिक सुखसे राज्य करने लगा, और चिलातीपुत्र भयके मारे अन्यत्र भाग गया । f
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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