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________________ चतुर्थ भाग। १७८। जिन परमाणुओंका बंध, उदय और निर्जरा एक ही समयमें हो, उनके आनवको ईर्यापथ पानव कहते हैं। १७९ । सांपरायिक प्रास्त्रवका कर्ता (स्वामी) कपाय सहित और इर्यापथका स्वामी कपायरहित आत्मा होता है। १८० । शुभयोगसे शुभास्तव और अशुभयोगसे अशुभास्रव होता है। १८ । शुभ परिणामोंसे उत्पन्न योगको शुभयोग और अशुभ परिणामोंसे उत्पन्न योगको अशुभयोग कहते हैं। ४४. राजा श्रेणिक । प्रवसे प्राय: २५०० वर्ष पहिले अर्थात् अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामीके समयमें मगधदेशकी राजगृही नगरीमें एक एपश्रेणिक नामका राजा राज्य करता था । मगधदेशको प्राज कल विहारप्रदेश कहते हैं। परन्तुराजगृही नगरीअप भी राजगृही के नामसे प्रसिद्ध है, जो विहारके भागलपुर और पटनेके निकट है। विहारप्रान्तमें उस समय बौद्धधर्मका अधिक प्रचार था, क्योंकि वौद्धधर्मका चलानेवाला गौतमबुद्ध इसी विहारप्रान्तमें ही उत्पन्न हुआ था, और उसके उपदेशोंका वहांपर बहुत प्रभाव पड़ता था। कहते हैं कि, राजा उपश्रेणिक भी वौद्धधर्मावलम्बी ही था। उपश्रेणिककी अभेक रानियां थी, उनमें एक इन्द्राणी नामकी
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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