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- जैनवालवोधक. १६३ । संज्वलन और नो कपायफे तीय उदयसे निरतिचार चारित्र पालने में अनुत्साह होनेको तया स्वकरको असावधानता को प्रमाद कहते हैं।
१६४ । प्रमाद पंद्रह प्रकारका है। विकया ४(स्त्री कथा,.' राष्ट्रकथा, भोजन कथा, राज कथा ) कपाय ४ (संज्वलनके तीव्रोदय जनित क्रोध, मान, माया, लोभ,) इंद्रियोंके विषय ५, निद्रा एक और राग एक ।
. १६५ । संज्वलन और नोकपायके मंद उदयसे प्रादुर्भूत प्रात्माके परिणाम विशेषको कपाय कहते हैं।
१६६ । मनोवर्गणा अथवा काय वर्गणा (आहार वर्गणा तथा कार्माण वर्गणा ) और वचन वर्गणाके अवलंबसे कर्म नोफर्मको ग्रहण करनेकी शक्ति विशेषको योग कहते हैं।
१६७ । योग पंद्रह प्रकारका है-मनोयोग ४ सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोग, उभय मनोयोग, और अनुभव मनोयोग' काय योग ७ ( औदारिक, प्रौदारिकमिश्र, वैक्रियक, वैक्रियक मिश्र, आहारक, आहारक मिश्र, और कार्माण ) वचन योग । (सत्य वचन योग, असत्य वचन योग, उभय वचन योग, और अनुमय वचन योग)
५६८ । मिथ्यात्वनी प्रधानतासे सोलह प्रकृतियोंका बंध होता है। जैसे-मिथ्यात्व, हुंडकसंस्थान, नपुंसक वेद, नरक गति, नरकगत्यानुपूर्वी, नरकायु, असंप्राप्तस्पाटिका. संहनन,. जाति ४ पकेंद्रिय, द्वीन्द्रिय.त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, स्थावर, प्रातप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण। .