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चतुर्य भाग।
२०६ विचार करके देख, यदि तुझे अच्छा लगे तो कर, नहीं तो मेरा
कुछ आग्रह नहीं है। . . वे दोनों नाग नागिनी लकड़ेमेंसे टुकड़े होकर पड़े थे उन्होंने मरते समय तीर्थकर भगवानका दर्शन किया और उनके मुखका उपर्युक्त भाषण सुनकर शांतचित्त होकर मरण किया सो धरणेंद्र पदमावती हुये । उन्हें भरते समय भगवानका साक्षात् दर्शन अना। यह उनका बडा भारी पुण्योदय समझना चाहिये। .
तदनंतर पार्श्वनाथ स्वामी तौ अपने घर आये । वह तापसी कुछ दिनोंवाद मरकर ज्योतिर्वासी शंवर नामका देव हुआ। भगवानका आयु जब तीस वर्ष हो गया तव अयोध्याके राजा जयसेनने भगवान पर अपनी अतिशय भक्ति होने के कारण कुछ घोड़े वगेरह बहुतसी वस्तुयें एक दूतके साथ भेजी थीं। सो वह दुत सब सामग्री लेकर वनारस गया । भगवान सिंहासन परं. बैठे.थे सो उसने बड़े आनंदके साथ प्रभुको नमस्कार किया और राजाकी भेजी हुई सव मेंट भगवानके सामने रखकर बोलो कि-राजा जयसेनने आपको साष्टांग नमस्कार कहा है। तब भगवानने उसको अजोध्याके सब समाचार पूछे । उस दूतने जो जो तीर्थकर अजोध्यामें उत्पन्न हुये और कर्म काटकर 'मोसंधाम पंधारे उन सवका वर्णन भी किया जिसको सुनकर भगवानके मनमें वैराग उत्पन्न हो पाया और तत्काल ही मनमें चिंतना करने लगे कि- ... ... . . . . .
सबसे श्रेष्ठ पद इन्द्रासन वह भी मैंने इच्छानुसारभोग लिया तो भी मेरी तृप्ति नहिं हुई तो इस मनुष्य जन्ममें कितना सुख